नई दिल्ली: सर्वाइकल कैंसर वैसे तो भारत में महिलाओं में होने वाले प्रमुख कैंसर में से एक है, लेकिन इससे बहुत आसानी से बचाव भी संभव है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2019 में भारत में 45000 से ज्यादा महिलाओं की मृत्यु सर्वाइकल कैंसर के कारण हो गई थी। सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए इसके टीकाकरण को लेकर बड़े पैमाने पर जागरूकता लाने और नियमित स्क्रीनिंग की आवश्यकता है। राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) के विशेषज्ञों ने यह बात कही।
आरजीसीआईआरसी की गायनी ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉक्टर वंदना जैन ने कहा, ‘सर्वाइकल कैंसर का शुरुआती स्तर पर ही पता लगाना संभव है, क्योंकि इसमें 10 से 15 साल तक प्री-कैंसरस स्टेज रहता है और पैप स्मियर जैसी सामान्य जांच से इसका पता लग सकता है, जिससे कैंसर को बढ़ने से रोकना संभव है। हर तीन साल में महिलाओं को पैप टेस्ट की सलाह दी जाती है। साथ ही 30 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को एचपीवी टेस्ट भी कराना चाहिए।’
सर्वाइकल कैंसर के ज्यादातर मामलों में हाई रिस्क ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) कारण होता है। सामान्यतः एचपीवी के संपर्क में आने पर महिला के शरीर का इम्यून सिस्टम उस वायरस को किसी भी तरह का नुकसान करने से रोकता है। हालांकि कुछ महिलाओं का इम्यून सिस्टम उस वायरस को खत्म नहीं कर पाता है और बहुत ज्यादा समय तक हाई रिस्क एचपीवी के संपर्क में रहने से सर्वाइकल कैंसर का खतरा रहता है।
डॉ. वंदना ने कहा, ‘दुर्भाग्य से शुरुआती स्टेज पर सर्वाइकल कैंसर का कोई लक्षण नहीं होता है। इसके लक्षण तब दिखने शुरू होते हैं जब कैंसर एडवांस्ड स्टेज पर पहुंच जाता है। इसलिए नियमित तौर पर जांच कराते रहना चाहिए, जिससे शुरुआती स्टेज पर ही बीमारी की पहचान हो सके। मासिक स्राव में अनियमितता, माहवारी के अलावा भी रक्त स्राव होना, शारीरिक संबंध बनाने के बाद रक्त स्राव होना, मीनोपॉज के बाद रक्त स्राव होना, दुर्गंधयुक्त स्राव होना आदि सर्वाइकल कैंसर के लक्षण हैं।’
एक से ज्यादा से लोगों से शारीरिक संबंध बनाना और बहुत कम उम्र में यौन गतिविधियों में संलिप्त हो जाना सर्वाइकल कैंसर के कारकों में शुमार हैं। यौन संचारी संक्रमण (एसटीआई) और एचआईवी से भी एचपीवी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान से भी खतरा बढ़ जाता है। स्वच्छता का ध्यान नहीं रखने, जागरूकता नहीं होने और समय पर स्क्रीनिंग नहीं होने के कारण शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाइकल कैंसर के मामले ज्यादा होते हैं।
डॉ. वंदना ने आगे कहा कि सर्वाइकल कैंसर के खतरे को कम करने के लिए एचपीवी से बचाव का टीका लगवाना चाहिए। नौ से 26 साल की उम्र की लड़कियों व महिलाओं के लिए टीका उपलब्ध है। टीके का सबसे ज्यादा प्रभाव तब होता है, जब यौन गतिविधियां शुरू होने से पहले ही लड़की को टीका लगवा दिया जाए। 9 से 14 साल की उम्र में दो इंजेक्शन के रूप में टीका लगाया जाता है और 14 से 26 की उम्र में तीन इंजेक्शन की जरूरत होती है। हालांकि टीके के बाद भी नियमित स्क्रीनिंग जरूरी है।
टीका सर्वाइकल कैंसर से 70 से 80 प्रतिशत तक बचाव करता है। इसलिए जल्दी पता लगाने और समय पर इलाज के लिए स्क्रीनिंग बहुत जरूरी है। हालांकि आंकड़ो के अनुसार 2019 में 10 में से 1 से भी कम महिला ने सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग कराई थी।
0 टिप्पणियाँ