जब हम महिला कहते हैं , तो इसका मतलब सिर्फ़ महिला नहीं होता , बल्कि हम इस शब्द के माध्यम से हम आधी दुनिया के बारे में बात कर रहे होते हैं लेकिन सवाल यहीं खड़ा होता आज हर तरफ इनको आधी दुनिया क्यों कहा जाता है ?
क्या कोई भी चीज पूरी पूरी दो लोगों की नहीं हो सकती। पूरी दुनिया पुरषो की भी है और पूरी दुनिया महिलाओं की भी है अलग अलग हिस्सा क्यों , सोच रहे होते है विचार - विमर्श कर रहे होते हैं । तब भी एक पुरुष वादी सोच काम कर रही होती है। महिलाओं कदम कदम पर पूर्षों का साथ दिया है। हमारे देश और समाज का विकास तभी संभव है जब दोनों अलग अलग आधी आधी दुनिया ना लेकर बल्कि एक साथ विकास करें और एक दूसरे का समान करें।
ये बात किसी से नहीं छिपी है की पुरुषों ने महिलाओं का शोषण किया। लेकिन इस बात को भी नहीं जुठलाया नहीं जा सकता महिलाओं ने महिलाओं का शोषण कम नहीं किया है कभी सास के रूप मे कभी बहू या नंद के रूप मैं। इसलिए हम सब को पूरी सोच को बदलना होगा।
जब से मानवीय सभ्यता की शुरुआत तब से स्त्री जाति का इस सभ्यता को मज़बूत करने में अहम योगदान रहा है । पर विडम्बना है । हमारे पुरुषवादी समाज ने स्त्री जाती को हर स्तर पर कमतर आँका है । लेकिन स्त्रियों का वर्तमान, और आने वाला भविष्य स्वर्णिम है अतः मैं स्त्रियों के इस स्वर्णिम आध्ययों का उल्लेख आपके समक्ष करना चाहूँगा ।
आज जो सम्मान स्त्रियों को हमारे समाज मैं मिला है वह भीख या दया का स्वरूप नहीं बल्कि स्त्रियों ने इसे लम्बे संघर्ष के बाद कमाया है !
आधुनिक भारत के संदर्भ में अगर हम कुछ महान महिलाओं का नाम लेना चाहे तो हम , रानी लक्ष्मीबाई , मदर टेरेसा ,सावित्रीबाई फुले , झलकारी बाई , फ़ातिमा सेख, कल्पना चावला , इंद्रा गांधी ,सुषमा स्वराज इत्यादि महत्वपूर्ण नामो का उल्लेख कर सकते है
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन महिलाओं के त्यागऔर संघर्ष ने समूचे महिला समुदाय को एक आवाज़ दी और महिला सशक्तिकरण की नीवं को ठोस तरीक़े से रखा !
इसी का परिणाम है आज स्त्री का हर जगह बोल बाला है , चाहे वह हेमा दास हों या मैरी काम हो या मनुशी चिल्लहर । मुझे गर्व है कि एक भारतीय नारी प्रीति पटेल ब्रिटिश सरकार मैं ग्रह मंत्री है।
और हिंदी के प्रसिद्ध कवि ने कामयानी महाकाव्य में कहा है - ‘नारी तुम सिर्फ़ श्रद्धा हो ‘ ।
मुझे लगता नारी ने इस बात को झुटला दिया है कि वह केवल श्रद्धा ही नहीं इससे बहुत आगे जा चुकी है ।
आज स्त्री कंधे पर बंदूक़ उठा कर देश के दुश्मनों का सामना कर रही , आज लड़कियाँ पायलेट बनकर आसमान में अपना परचम लहरा रही है आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं जहाँ लड़कियों की उपस्थती न हो ।
यह हमारे देश के भविष्य के लिए अत्यंत शुभ संदेश है । संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा था -
“ मैं समुदाय अथवा समाज की उन्नति का मूल्याँकन स्त्रियों की उन्नति के मूल्याँकन के आधार पर करता हुँ"
आज हमारे देश में महिलाएँ उन्नति के चरम पर हैं इसलिए हम यह कह सकते है कि हमारा देश भी अब जल्द उन्नति के चरम पर होगा ।
वर्तमान सरकार के द्वारा जिस सक्रियता से महिला सशक्तिकरण के लिए क़दम उठाए गए हैं , वह सराहनीय है - "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ,,के बुलंद नारे के साथ हमारे समाज की मानसिकता बदली है ।
आज के समय में महिलायें रसोई के बजाय स्कूल कॉलेज तथा विभिन्न रोज़गार स्थलों पर दिखाई दे रही हैं ।
ज़रूरत है कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में और भी बेहतर मौलिक प्रयास किए जाए ताकि वे समाज की मुख्य धारा में आकर हमारे देश के विकास में योगदान दे सके।
इन सभी बातों के अलावा भी हमारे समाज में कई ऐसी विदूपताएँ है , जिसके कारण स्त्रियों को शोषण ओर दुःख का सामना करना पड़ रहा है हम इस बात से मुँह नहीं मोड़ सकते है कि हमारे देश में अखवारों के पन्ने बलात्कार की खबरों से भरे रहते हैं ये हमारे देश में महिलाओं से सम्बंधित बहुत ही बड़ी समस्या है ।
इसके लिए में वर्तमान सरकार की मैं प्रशंसा करना चाहूँगी कि सरकार ने बलात्कार से संबंधित घटनओं को रोकने के लिए कड़े क़ानून बनाए ।
अभी ज़्यादा दिन भी नहीं हुए जब सरकार ने एतिहासिक “तीन तलाक़ “ क़ानून को संसद में पारित किया गया । यह अत्यंत ही उल्लेखनीय क़दम है । मौजूदा सरकार महिलाओं पर खूब काम कर रही है।
हमें सरकार के इतर भी व्यक्तिगत स्तर पर महिला सशक्तिकरण के लिए आगे आना होगा ओर इसकी शुरुआत हमें अपने घर से करनी होगी ।
समाज में हो रहे किसी भी महिला पर अन्याय के ख़िलाफ़ हमें खड़ा होना होगा व न्याय के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी । यह सच है महिला पर अत्याचार करने वाले वाले लोग इसी समाज से है। अतः हमें व्यापक स्तर पर महिलाओं को लेकर अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा । तभी जाकर “हमारे देश की महिला सशक्त होगी और हम सशक्त भारत की ओर अग्रसर होंगे “
हरिशंकर परसाई जी ने एक दफा बोला था, कि "दिवस कमजोरों के मनाए जाते हैं,मजबूत लोगों के नहीं।" अगर परसाई जी की इन पंक्तियों पर विचार किया जाए, तो यह स्पष्ट है, कि वह महिलाओं को सचेत करने का प्रयास कर रहे हैं, कि झूठी सहानुभूति के चक्कर में पड़ने का कोई औचित्य नहीं,क्योंकि यह आपको पुनः विशुद्ध राजनीति में धकेलने का एक औजार मात्र है। इसलिए परवीन शाकिर लिखती हैं
तुम मुझ को गुड़िया कहते हो
ठीक ही कहते हो!
खेलने वाले सब हाथों को मैं गुड़िया ही लगती हूँ
जो पहना दो मुझ पे सजेगा
मेरा कोई रंग नहीं
जिस बच्चे के हाथ थमा दो
मेरी किसी से जंग नहीं
सोचती जागती आँखें मेरी
जब चाहे बीनाई ले लो
कूक भरो और बातें सुन लो
या मेरी गोयाई ले लो
माँग भरो सिन्दूर लगाओ
प्यार करो आँखों में बसाओ
और फिर जब दिल भर जाए तो
दिल से उठा के ताक़ पे रख दो
तुम मुझ को गुड़िया कहते हो
ठीक ही कहते हो!
सशक्तिकरण का वास्तविक अर्थ तभी संभव है,जब समाज की आधी आबादी अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो अथवा अवगत हो,
क्योंकि सशक्ति केवल बाहर निकल कर नौकरी कर लेना या पुरुषों की समतुल्यता कर लेना पर्याप्त नहीं है, बल्कि सशक्ति से अभिप्राय एक ऐसी मनोस्थिति के विकास से है, जो आपको आपके महत्व को जानने व समझने के योग्य बनाए,साथ ही वह आपको इतना सचेत बनाए कि आप अपने निर्णय ले पाने के समर्थ हो पाएं।
महात्मा गांधी जी ने एक बार इस संदर्भ में कहा था, कि "अबला पुकारना महिलाओं की आंतरिक शक्ति को दुत्कारने जैसा है।"
जिसका सीधा और स्पष्ट अर्थ है, कि नारी को किसी भी प्रकार की झूठी सहानुभूति से बचते हुए अपने वास्तविक अधिकारों के प्रति सचेत होना चाहिए,यही एकमात्र उपाय है,जिससे सच्चे अर्थों में नारी सशक्तिकरण संभव है।
स्वामी विवेकानंद ने अपने पूरे जीवन के दौरान महिलाओं कि स्थिति में सुधार का प्रयत्न किया,स्वामी विवेकानंद भी नारी सशक्तिकरण पर विचार करते हुए कहते हैं,
"महिलाओं की स्थिति में सुधार के बिना दुनिया की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता।
पंछी के लिए एक पंख से उड़ पाना संभव नहीं है।"
जिसका अर्थ है, स्वामी विवेकानंद इस बात को जानते हैं,की समाज के इस आधी आबादी के विकास के बिना पूर्ण विकास की कामना मात्र पल्पना के अतिरिक्त कुछ भी नही है।
अगर महिलासशक्तिकरण के इतिहास का अवलोकन करें तो यह स्पष्ट होता है, कि अपने हक के लिए आवाज उठाने की यह लड़ाई इस आधी आबादी ने बड़ी कुशलता और धैर्य के साथ लड़ी है,यह नारी के जाग्रत और सचेत होने का प्रमाण है।पश्चिम ने तो बाद में स्त्रियों के ऊपर ध्यान दिया लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति में तो प्राचीन काल से ही स्त्रियों को काफी सम्मान मिला है प्राचीन काल से ही हमारे यहां स्त्री की पूजा होती है और हमारे यहां बड़ी-बड़ी विदुषी यो ने जन्म लिया जिसमें वैदिक काल की घोषा का नाम बहुत प्रसिद्ध है और प्राचीन काल में हमारे देश में पितृसत्तात्मक नहीं बल्कि मातृसत्तात्मक संरचना थी इसलिए हमारा देश हजारों सालों से स्त्री का सम्मान किया है और आज भी किया जा रहा है इसका ज्वलंत उदाहरण यह है इस वक्त भारत के सबसे सर्वोच्च पद पर एक महिला विद्यमान है यानी हमारी राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती द्रोपति मुर्मू जी हैं नारी मां के रूप में पुरुष को जन्म देती, जो उसको चलना शिखाती है , जिसकी छाती से लग वह नया जीवन पता वह हृदयपोषा ऋतंभरा मां है , बहिन के रूप में अपने भाई की लंबी उम्र हेतु उसकी मस्तक पर तिलक लगाती है , उसकी मनोकामना की पूर्ति हेतु आर्शीवाद के शत- शत दीप जलाती है , पत्नी के रूप में अपने सारे जीवन को अपने पति को समर्पित करती है उसकी खुशी को दोगुना औऱ कष्ट को आधा करती है त्याग , तपस्या औऱ बलिदान की प्रतिमा पत्नी होती है , शक्ति के रूप में दुर्गा , परिवारिक श्रष्टि के लिए ब्रह्मा सहिष्णुता की पराकाष्ठा शिव और शिवा है ।
अगर एक पुरुष शिक्षित होता है तो एक परिवार शिक्षित होता , अगर नारी शिक्षित होती तो पूरा समाज शिक्षित होता ।
किसी ने कहा है,"नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई,बेड़ियों को तोड़ने लगेगी,तो विश्व की कोइ शक्ति
उसे नहीं रोक पाएगी",और ऐसा प्रतीत होता है, कि नारी विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सफल सक्रियता और नेतृत्व के कारण इन जंजीरों को ध्वस्त करने का कार्य प्रारंभ कर चुकी है।
रोहित मिश्रा
पीएचडी शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय
0 टिप्पणियाँ